जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में पर्यावरण सुरक्षा पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन
अर्थशास्त्र को सर्वहितकारी बनाने की आवश्यकता- प्रो. गोयल
लाडनूँ, 9 मार्च 2019। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के समाज कार्य विभाग के तत्वावधान में ‘‘पर्यावरण सुरक्षा एवं समाज कार्य अभ्यास’’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ शनिवार को यहां सेमिनार हाॅल में किया गया। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि जगन्नाथ विश्वविद्यालय जयपुर के कुलपति प्रो. मदन मोहन गोयल ने कहा कि कहा कि अर्थशास्त्र को स्वार्थ की भूमिका से निकाल कर सर्वहितकारी बनाने की आवश्यकता है। जब ‘‘मैं’’ से निकाल कर ‘‘आप’’ की अवधारणा अर्थशास्त्र में आयेगी तो अनेक समस्याओं का समाधान स्व्तः ही हसो जायेगा। यह सब नैतिक अर्थशास्त्र को बढावा देने से होगा। स्वार्थ और लालच के कारण भी पर्यावरण को खतरा एवं अन्य समस्यायें पैदा होती है। इन पर संयम कायम करने पर इन सबसे से छुटकारा पाया जा सकता है। उन्होंने राष्ट्रीय सेवा योजना के स्वयंसेवक की भूमिका को पर्यावरण से जोड़ दिया जावे तो बहुत काम हो सकता है। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि दिल्ली स्कूल आफ सोशियल वर्क के सेवानिवृत प्राचार्य प्रो. आर.आर. सिंह ने पर्यावरण को आध्यात्मिक व नैतिक मूल्यों से जोड़ते हुये संस्थान के तीन आयामों दवा, दुआ और हवा की शुद्धि की आवश्यकता बताई। उन्होंने अरावली समस्या और राज्यों के मध्य जल विवाद पर भी सबका ध्यान आकृष्ट किया।
परस्परता से संभव है पर्यावरण संरक्षण
कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये अपने सम्बोधन में कहा कि परस्पर निर्भरता से समस्याओं से निपटा जा सकता है। पर्यावरण की रक्षा के लिये परस्परता आवश्यक तत्व है। उन्होंने संतोष और इच्छा-विहीनता के साथ वस्तुओं की मितव्ययिता व उन्हें व्यर्थ बर्बाद नहीं करने की प्रवृति के विकास की आवश्यकता भी बताई। प्रो. दूगड़ ने वसुधैव कुटुम्बकम और पर्यावरण संरक्षण के साथ सामाजिक वकालत पर भी प्रकाश डाला। मुख्य वक्ता टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशियल साईंस मुम्बई के निदेशक प्रो. एएन सिंह ने पर्यावरण के विभिन्न आयामों, सरकारी नीतियों और वैधानिक प्रावधानों के बारे में विस्तार से बताया। प्रारम्भ में संगोष्ठी के निदेशक डाॅ. बिजेन्द्र प्रधान ने संगोष्ठी की पृष्ठभूमि और उद्देश्य पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का शुभारम्भ छात्राओं के मंगलगान से की गई। अंत में अंकित शर्मा ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. पुष्पा मिश्रा ने किया। राष्ट्रीय संगोष्ठी में देश भर के प्रतिभागी हिस्सा ले रहे हैं।
भ्रूण हत्या के प्रति समाज में घृणा व उपेक्षा का माहौल बनना जरूरी- स्वामी राघवाचार्य
10 मार्च 2019। रैवासा धाम के पीठाधीश्वर स्वामी राघवाचार्य महाराज ने कहा है कि पर्यावरण के संकट की विभीषिका से मुक्ति के लिये समाज को जागरूक होना पड़ेगा। मनुष्य के मन और बुद्धि में व्याप्त प्रदूषण के कारण पर्यावरण पर संकट पैदा होता है। हम जितने जागरूक होंगे उतनी ही प्रकृति, पर्यावरण और मानव मात्र की सेवा कर पायेंगे। वे यहां जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में समाज कार्य विभाग के तत्वावधान में आयोजित पर्यावरण सुरक्षा एवं समाज कार्य अभ्यास विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित कर रहे थे।
भ्रूण हत्या के पाप का कोई प्रायश्चित नहीं
स्वामी राघवाचार्य ने इस अवसर पर जहां प्रकृति से खिलवाड़ को गलत बताया, वहीं कन्या भू्रण हत्या को महापाप बताते हुये कहा कि महाभारत में भी आया है कि भ्रूणहत्या करने वाले का सूतक कभी खत्म नहीं होता। इस पाप का कोई प्रायश्चित भी नहीं होता है। राघवाचार्य ने बताया कि अगर उन्हें यह पता लग जाता है कि किसी घर में भ्रूणहत्या हुई है तो वे उस घर में नहीं जाते और कुछ भी खाना-पीना नहीं करते। उन्होंने कहा कि जब तक ऐसे लोगों के प्रति समाज में घृणा और उपेक्षा का माहौल बनना आवश्यक है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके स्वच्छता अभियान की प्रशंसा करते हुये कहा कि सारी समस्यायें पर्यावरण के प्रकोप की है और प्रत्येक व्यक्ति अपने दायित्व को निर्वहन करें और प्रकृति के नजदीक रहें तो स्थिति सुधर सकती है। प्रत्यूेक व्यक्ति जागरूक हो और अपने मन-बुद्धि का प्रदूषण दूर करें तो पर्यावरण शुद्ध हो जायेगा।
सामाजिक पर्यावरण में भी सुधार जरूरी
राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र के विशिष्ट अतिथि श्रम निदेशालय के सचिव व श्रम आयुक्त डाॅ. नवीन जैन आईएएस ने अपने सम्बोधन में कहा कि समाज से लिगभेद का मिटना आवश्यक है। बेटी बचाओ बेटी पढाओ का समर्थन करते हुये उन्होंने कहा कि पर्यावरण के विभिन्न पहलुओं में सामाजिक पर्यावरण की तरफ भी ध्यान देना आवश्यक है। प्रदेश में संतान के जन्म से पूर्व परिवार की सोच पुत्र-जन्म की ही रहती है, चाहे कोई इसे छिपाये या खुलकर कहे। ज्यादातर लोग इस बात को लेकर ढकोसला ही करते हैं और बेटियों के गुणगान का दिखावा करते हैं। प्रायः परिवारों में दो बेटियों के बाद तीसरा बेटा मिलेगा और कहा जाता है कि दोनों लिंग की संतान का पालन-पोषण करना चाहते थे। लेकिन दो बेटों के बाद तीसरी बेटी का जन्म प्रायः नहीं होता, क्योंकि कोई बेटी का जन्म चाहता ही नहीं है। यहां दोनों लिंग की संतान के पालन की बात गायब हो जाती है। इसी से लिंगानुपात बढता है।
बदलाव की शुरूआत स्वयं से करें
डाॅ. नवीन जैन ने कहा कि ढकोसला नहीं वास्तविकता पर विचार होना चाहिये। अक्सर देखा गया है कि लोग बदलाव नहीं चाहते और इसके लिये कोई चीज शुरू करने से पहले ही उसके अपवादों को प्रस्तुत करना शुरू कर देते हैं। बदलाव की शुरूआत खुद से ही करनी होगी और इसके लिये अपना नजरिया बदलना होगा। उन्होंने देश की प्रगति के लिये उच्च शिक्षा की व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता बताई और कहा कि देश के लोग प्रोडक्टिव बनने आवश्यक है। देश के बौद्धिक व सामाजिक पर्यावरण पर ध्यान देने की जरूरत है। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि प्रो. केके सिंह, डाॅ. अनूप भारती व कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने भी विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का प्रारम्भ गौरव दीक्षित के कविता पाठ से किया गया। अंकित शर्मा ने दो दिवसीय संगोष्ठी की रिपोर्ट प्रस्तुत की और बताया कि संगोष्ठी में 6 सत्र आयोजित किये गये, जिनमें 38 पत्रवाचन किये गये। प्रारम्भ में छात्राओं ने स्वागत गीत एवं समाज कार्य विभाग के विभागाध्यक्ष डा. बिजेन्द्र प्रधान ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में प्रो. आरआर सिंह, प्रो. एएन सिंह, आरके जैन, डाॅ. वीणा द्विवेदी, डाॅ. मनीषा जैन, डाॅ. इंदुरानी सिंह, डाॅ. वीपी सिंह, डाॅ. लालाराम जाट, डाॅ. अमित सिंह राठौड़, डाॅ. ऋचा चैधरी, डाॅ. जुगलकिशोर दाधीच, डाॅ. युवराज सिंह खांगारोत, डाॅ. सत्यनारायण भारद्वाज, डाॅ. विकास शर्मा आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. पुष्पा मिश्रा ने किया।

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