जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में प्रमाण मीमांसा ग्रंथ पर सात दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन

प्राचीन, वैविध्यपूर्ण व समृद्ध है भारतीय दर्शन- प्रो. भट्ट

लाडनूँ, 25 फरवरी 2019। मानव संसाधन मंत्रालय के अन्तर्गत इंडियन कौंसिल आफ फिलोसोफिकल रिसर्च एवं जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के जैनविद्या एवं तुलनात्मक धर्म व दर्शन विभाग के संयुक्त तत्वावधान में यहां प्रमाण मीमांसा पर सात दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन सोमवार से प्रारम्भ किया गया। कुलपति प्रो. बीआर दूगड़ की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यशाला के मुख्य अतिथि भारतीय दर्शन अनुसंधान परिषद (आईसीपीआर) नई दिल्ली के निदेशक प्रो. एसआर भट्ट ने भारतीय दर्शन बहुत ही प्राचीन, वैविध्यपूर्ण, समृद्ध एवं सता व मानव के सभी पक्षों को समाहित करने वाला है। इन सभी पक्षो से परीचित होने के लिये संस्कृत व प्राकृत भाषाओं की दार्शनिक शब्दावली का ज्ञान आवश्यक है। उन्होंने कहा कि हमारा राष्ट्र-चिंतन प्राचीन, समृद्ध व इक्षा व सता का साक्षात्कार करवाने वाला है। सता के साक्षात्कार के लिये इक्षा होनी आवश्यक है। इक्षा से चिंतन के बाद अन्वीक्षा होती है और इसके बाद परीक्षा होती है। परीक्षा में समीक्षक समीक्षा करते हैं। जरूरत है कि दार्शनिक चिंतन इन तीनों स्तर पर आधारित हो। प्रो. भट्ट ने कहा कि तत्व तीन रूपों में सामने आता है। अस्तित्व, ज्ञेयत्व और अधिज्ञेयत्व से हुई अभिव्यक्ति ही अस्तित्व की होती है। जो वस्तु जैसी है, उसका ज्ञान भी वैसा ही होना चाहिये और जैसा ज्ञान है वैसी ही वह वस्तु होनी चाहिये। उन्होंने दार्शनिक चिंतन में प्रमाण के महत्व को बताया तथा प्रमाण मीमांसा ग्रंथ में सांख्य दर्शन से न्याय दर्शन तक सभी समाहित बताये। यह महत्वपूर्ण, सारगर्भित व विवेचनीय ग्रंथ है, इसे सूक्ष्म दृष्टि से देखना व समझना चाहिये।

सामान्य जीवन में हो रहा प्रमाण मीमांसा का उपयोग

वैदिक विद्वान प्रो. दयानन्द भार्गव ने कार्यशाला में अपने सम्बोधन में बताया कि प्रामण शास्त्र व प्रमाण मीमांसा के अध्ययन के लिये उस विषय में रूचि का होना जरूरी है। जिस विषय में रूचि जाग जाती है तो वह औपचारिक पठन-पाठन नहीं रहता और वह आनन्द दायक बन जाता है। उन्होंने हेमचन्द्राचार्य रचित प्रमाण मीमांसा ग्रंथ के बारे में कहा कि हर निर्णय के सही व गलत होने की परीक्षा की शक्ति इस शास्त्र से मिलती है। उन्होंने कहा कि जैन दर्शन में काॅमन सेंस को महत्व दिया गया है। यह प्रमाण शास्त्र आज भी हमारे सामान्य जीवन में उपयोग आता है। इससे हम सही व गलत का निर्णय लेने में सक्षम होते हैं। शुभारम्भ समारोह की अध्यक्षता करते हुये कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कहा कि भारतीय दर्शन दो पद्धतियों से चर्चा करता है- विश्लेषणात्मक व समन्वयामक। इनके निष्कर्ष अलग-अगल हो सकते हैं। पूर्व मान्यताओं पर तर्क-वितर्क नहीं किये जा सकते हैं। उनके निगमन पर तर्क-वितर्क होते हैं। विश्लेषण में बौद्ध दर्शन में क्षणभंगुरवाद है और वेदांत दर्शन में माया व ब्रह्म की सता रही है। जैन दर्शन में दोनों आधार अपनाये गये व परिणाम अलग-अलग आये। उन्होंने कहा कि सत्य सभी में है। सत्य व्यापक है, विराट् है। ज्ञान का आधार है।

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