जैन विश्व भारती संस्थान द्वारा भगवान् महावीर जयंती के उपलक्ष्य में दर्शन दिवस के अंतर्गत राष्ट्रीय वेबिनार आयोजित

National Webinar Report

दर्शन दिवस के अंतर्गत भगवान् महावीर जयंती के उपलक्ष्य में

जैनविद्या तथा तुलनात्मक धर्म एवं दर्शन विभाग, जैन विश्व भारती संस्थान

द्वारा आयोजित

एवं

भारतीय दर्शन अनुसंधान परिषद (नई दिल्ली )

द्वारा प्रायोजित

राष्ट्रीय वेबिनार

"आधुनिक युग में भगवान् महावीर के दर्शन की प्रासंगिकता”

Relevance of Lord Mahavira’s Philosophy in the Modern Era

दर्शन दिवस के अंतर्गत भगवान् महावीर जयंती के उपलक्ष्य में, जैनविद्या तथा तुलनात्मक धर्म एवं दर्शन विभाग, जैन विश्व भारती संस्थान, लाडनूं द्वारा आयोजित तथा भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् (नई दिल्ली ) द्वारा प्रायोजित ‘आधुनिक युग में भगवान् महावीर के दर्शन की प्रासंगिकता” विषयक राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन २४ अप्रैल २०२१ को पूर्वाह्न 11 बजे किया गया । माननीय कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ जी के संरक्षकत्व में आयोजित इस वेबिनार के मुख्य अतिथि भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् (नई दिल्ली ) के माननीय अध्यक्ष प्रो. आर.सी. सिन्हा थे ।

भगवान् महावीर दर्शन के विभिन्न आयामों पर हुए, देश के मूर्धन्य विद्वानों के व्याख्यानों से सुजज्जित इस राष्ट्रीय वेबिनार का शुभारम्भ जैन विश्व भारती संस्थान की मुमुक्षु बहनों द्वारा “महावीर स्तुति” से हुआ । तत्पश्चात विभाग की विभागाध्यक्षा प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा ने अपने सभी आमंत्रित माननीय वक्ताओं एवं विद्वान् अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि “भगवान् महावीर के २६२० वें जन्म कल्याणक की सच्ची सार्थकता तभी है, जब हम उनके दर्शन को अपनाकर “सर्व जन हिताय, सर्व जन सुखाय” सिद्धांत को आत्मसात करेंगे । उन्होंने कहा कि ‘वर्तमान समय में भगवान महावीर के अहिंसा, अनेकांत एवं अपरिग्रह जैसे सिद्धांत निश्चय ही सर्वोदयी संमार्ग दिखा सकते हैं’ ।

इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के संयोजक, जैनविद्या तथा तुलनात्मक धर्म एवं दर्शन विभाग में सहायक आचार्य डॉ. अरिहन्त कुमार जैन ने सभी आमंत्रित विद्वान् वक्ताओं का विस्तृत परिचय देते हुए ‘भगवान् महावीर के दर्शन’ की उपयोगिता पर प्रकाश डाला और कहा कि “भगवान् महावीर का दर्शन, अध्यात्म और विज्ञान से परिपूर्ण एक सार्वभौमिक दर्शन है, जिसके सिद्धांत सर्वोदयी और शाश्वत हैं” ।

 

प्रथम वक्ता के रूप में श्रीलाल बहादुर शास्त्री केंद्रीय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली के जैन दर्शन विभाग के प्रो. अनेकांत कुमार जैन ने ‘भगवान् महावीर का विभिन्न संस्कृतियों पर प्रभाव’ विषय पर कहा कि “भगवान महावीर का नाम महावीर इसलिये पड़ा था क्योंकि उन्होंने पूरी दुनिया की ईश्वर कर्तृत्व की अवधारणा के विपरीत तत्त्व का सच्चा स्वरूप बतलाने का साहस किया था । वे एक ईश्वर को नहीं मानते थे बल्कि उन्होंने भक्त में भी पुरुषार्थ का प्राण फूंककर भगवान बनने का रास्ता खोला और आध्यात्मिक प्रजातंत्र की स्थापना की । डॉ. जैन ने भारत की सभी प्राचीन संस्कृति के साथ-साथ पाश्चात्य संस्कृति पर महावीर दर्शन के प्रभाव को प्रस्तुत करते हुए कहा कि “भगवान महावीर के इस चिंतन का प्रभाव वेद के बाद उपनिषदों में स्पष्ट देखा जा सकता है । वैदिकों में पशुबलि बंद करवा कर उन्हें अहिंसक भक्ति एवं तप की ओर अग्रसर किया । इस विषय पर विस्तृत चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि बौद्ध, इस्लाम, ईसाई, यहूदी, सिक्ख, कबीर आदि अनेक धर्मपंथों पर उनके चिंतन का स्पष्ट प्रभाव दिखलाई देता है ।

 

द्वितीय वक्ता के रूप में जैन विश्व भारती संस्थान, लाडनूं के दूरस्थ शिक्षा के निदेशक प्रो. आनंद प्रकाश त्रिपाठी ने अहिंसा दर्शन की प्रासंगिकता को बताते हुए कहा कि सच्ची अहिंसा वह है, जहाँ मानव- मानव के बीच भेदभाव न हो, हृदय और हृदय, शब्द और शब्द, भावना और भावना के बीच समन्वय हो । साथ ही वर्तमान की कठिन परिस्थितियों के सन्दर्भ में अपनी बात रखते हुए प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि “इस कोरोना महामारी जैसी कठिन परिस्थिति में भी इसके उपचार से सम्बंधित दवाइयों की जो कालाबाज़ारी, जमाखोरी आदि हो रही है, वो एक प्रकार की हिंसा ही है, वहीँ कई सज्जन, पीड़ितों की सेवा, मदद आदि करके एक मिसाल भी प्रस्तुत कर रहे है, जो मानवता रुपी अहिंसा को उजागर करती है ।

 

 

तृतीय वक्ता के रूप में जे. एन. व्यास यूनिवर्सिटी, जोधपुर के पूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो. धर्मचंद जैन जी ने अनेकांत दर्शन को समझाते हुए कहा कि “विश्व की बड़ी-बड़ी समस्याओं का समाधान अनेकांत का सिद्धांत दे देता है । अनेकान्त हमारे नित्य व्यवहार की वस्तु है, इसे स्वीकार किए बिना हमारा लोक व्यवहार एक क्षण भी नहीं चल सकता । विचार जगत का अनेकांत दर्शन ही, नैतिक जगत में आकर अहिंसा के व्यापक सिद्धांत का रूप धारण कर लेता है । यह अनेकता में एकता स्थापित करने के लिए सभी के हितों का चिंतन करता है एवं विभिन्न मतों के समन्वय की बात करता है । प्रो. जैन ने अनेकांत की प्रासंगिकता को बताते हुए आगे कहा कि “यदि विश्व के मतमतांतर अपनी संकुचित विचारधाराओं को उदार बनाकर अनेकांत की व्यापक और निष्पक्ष दृष्टि को अपना लें तो सांप्रदायिकता जन्य विद्वेषों और विवादों का अंत भी सहज संभव हो जाये जो विश्वशांति के लिये अनिवार्य है और आज जिसकी नितांत आवश्यकता है । अतः अनेकांत विचार ही जैन दर्शन, धर्म और संस्कृति का प्राण है और यही इसका सर्वोदयी तीर्थ भी है।

 

चतुर्थ वक्ता के रूप में जैन विश्व भारती संस्थान के संस्थापक कुलपति प्रो. महावीर राज गेलरा जी ने कहा कि “व्यक्ति जन्म से नहीं कर्म से महान बनता है”- यह उद्घोष ही महावीर की चिंतन धारा को व्यापक बनाता है। नर से नारायण और निरंजन बनने की कहानी ही महावीर का जीवन दर्शन है । उन्होंने आगे कहा कि “ भगवान् महावीर की दृष्टि वैज्ञानिक दृष्टि थी । आज हमारा कर्त्तव्य है कि उनके मौलिक सिद्धांतों को, उसके वैज्ञानिक और तर्कसंगत स्वरूप को दुनिया के सामने लाएं, ताकि उन संभावनाओं को परिपुष्ट किया जा सके, जिन्हें हम विश्व-शान्ति, विश्व-धर्म और विश्व-बंधुत्व जैसे नामों से जानते हैं । महावीर का पुनर्जन्म तो हो नहीं सकता, वे तो सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो गए । परन्तु उनका पुनर्जन्म हमारे दिलों में हो, इसकी आज आवश्यकता है ।

 

 

इस राष्ट्रीय वेबिनार के मुख्य अतिथि भारतीय दर्शन अनुसंधान परिषद (नई दिल्ली ) के माननीय अध्यक्ष प्रो. रमेश चन्द्र सिन्हा जी ने आधुनिक दार्शनिक शब्दावली के परिपेक्ष्य में, आधुनिकतावाद और उत्तरआधुनिकतावाद का उल्लेख करते हुए, भगवान महावीर के सिद्धांतों को सार्वकालिक बताया । उन्होंने कहा कि “ भगवान् महावीर का दर्शन एक जीवन्त दर्शन है, क्यूंकि इनके सिद्धान्त किसी विशिष्ट समाज, विशेष समय या परिस्थिति के लिये नहीं हैं, वरन् सार्वभौमिक हैं । दर्शन दिवस के अंतर्गत भगवान् महावीर के दर्शन पर केन्द्रित इस राष्ट्रीय वेबिनार को प्रो. सिन्हा ने बहुत सार्थक बताया एवं इस सम्पूर्ण आयोजन के सुव्यवस्थित संयोजन एवं सुंदर संचालन हेतु “जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म दर्शन विभाग” के प्रयासों की प्रशंसा की ।

 

 

इस राष्ट्रीय वेबिनार का समापन करने से पूर्व, संयोजक डॉ. अरिहन्त कुमार जैन ने “जैन दर्शन के विभिन्न अवधाराणाओं पर जैन विश्वभारती संस्थान द्वारा प्रकाशित चौदह मोनोग्राफ्स सीरीज का परिचय एवं महत्त्व को बताते हुए श्रोताओं को इससे अवगत कराया । अंत में डॉ. समणी अमल प्रज्ञा जी ने कुलपति महोदय, मुख्य अतिथि तथा सभी विशिष्ट वक्ताओं का धन्यवाद ज्ञापन किया । इस राष्ट्रीय वेबिनार में जैन विश्व भारती संस्थान के सभी विभागों के विभागाध्यक्ष एवं अध्यापकगण उपस्थित रहे । इस राष्ट्रीय वेबिनार का लाभ लेने हेतु २०२ प्रतिभागियों ने पंजीकरण कराया एवं ७० से भी अधिक प्रतिभागियों ने व्याख्यानों का लाभ लिया ।

 

 

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