आपदा-विपदा प्रबंधन पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

लाडनूँ, 6 फरवरी 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के समाज कार्य विभाग के तत्वावधान दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भ मंगलवार को यहां सेमिनार हाॅल में शोध निदेशक प्रो. अनिल धर की अध्यक्षता में किया गया। सामुदायिक सुरक्षा एवं आपदा-विपदा प्रबंधन विषय पर पर आयोजित इस संगोष्ठी के शुभारम्भ सत्र की मुख्य अतिथि स्टेट रिसोर्स सेंटर की प्रोग्राम डायरेक्टर रचना सिद्धा थीं। सिद्धा ने संगोष्ठी के शुभारम्भ में सम्बोधित करते हुये घटना, दुर्घटना व आपदा के अंतर को बताते हुये कहा कि जब किसी घटना के लिये हम तैयार नहीं होते हैं, तो वह आपदा बन जाती है। उन्होंने कहा कि हम आपदा को रोक सकते हैं और इसे दुर्घटना या घटना तक सीमित रख सकते हैं, लेकिन इसके लिये पर्याप्त तैयारी होनी आवश्यक है। तैयारी नहीं होने से भारी जन-धन हानि होती है। उन्होंने बताया कि आतंकवाद को अपने देश में अभी तक आपदा नहीं माना गया है, क्योंकि आपदा हमेशा अचानक होती है और आतंकवाद सुनियोजित होता है। हालांकि वह भी भारी जन धन हानि का कारण है। सिद्धा ने कहा कि इस कार्यशाला में आपदा नियंत्रण के विचार-विमर्श में आपदा से पूर्व, आपदा के समय और आपदा के बाद ये तीनों स्तरों पर नियंत्रण के प्रयासों को शामिल किया जाना चाहिये।

प्रकृति से खिलवाड़ करने से आती है आपदाएँ 

इस कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. धर ने कहा कि आपदाएँ प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों तरह की होती हैं और ये व्यक्ति को विचलित करती हैं। प्रकृति से खिलवाड़ करने से आपदाएँ बढती हैं। उन्होंने बताया कि आज लोग तीर्थस्थल पर पुण्यकर्म की बजाये हनीमून मनाने जाते हैं। आज आस्था के बजाये उनमें मौज-मस्ती और विलासिता की प्रवृति देखने को मिलती है, इससे प्रकृति से छेड़छाड़ व खिलवाड़ किया जाता है। पर्यावरण को प्रदूषित करने से आपदाएँ पैदा होती हैं। प्रकृति ने हमारे जन्म के साथ पेट भरने, लज्जा दूर करने, रहवास की छत उपलब्ध करवाने में हमारी मदद की है तो प्रकृति के प्रति हमारा भी कुछ दायित्व बनता है। आपदाओं से बचने के लिये इन दायित्वों से विमुख रहना उचित नहीं है। प्राकृतिक आपदाओं के साथ मानव-चूक से आपदाओं दुर्घटनाओं आदि के निवारण के लिये तंत्र मजबूत होना आवश्यक है। इस पर पर्याप्त विचार होना चाहिये।

आपदा प्रबंधन में स्थानीय लोगों का प्रशिक्षण आवश्यक

इस कार्यक्रम के विभागाध्यक्ष डाॅ. बिजेन्द्र प्रधान ने कार्यक्रम में स्वागत भाषण एवं कार्यशाला का विवरण प्रस्तुत करते हुये कहा कि विज्ञान व तकनीक का इस्तेमाल विकास के लिये होता है, लेकिन इनका दुरूपयोग विनाश भी करता है। दुर्घटनाओं, बम विस्फोट, हथियारों की होड़ आदि आपदाओं का मुकाबला करने के लिये आपदा प्रबंधन आवश्यक है। किसी भी आपदा के समय सबसे पहले सहायता के लिये पहुंचने वाले स्थानीय लोग होते हैं, सरकारी या गैरसरकारी तंत्र का सहयोग बाद में पहुंचता है। आपदा के आने से पहले तैयारी, आपदा के समय सहयोग एवं आपदा के बाद पुनस्र्थापन पर विचार करना इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य है। स्थानीय लोगों में से स्वयंसंवकों की पहचान करके उन्हें प्रशिक्षण प्रदान करना, संसाधन दवा, कपड़े, धन-संग्रह, भोजन प्रबंध एवं मशीनरी व तकनीकी सहयोग के सम्बंध में व्यवस्था करना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि आपदा को खत्म नहीं किया जा सकता, लेकिन उसे कम करने एवं उससे निपटने पर काम किया जा सकता है। कार्यक्रम का प्रारम्भ करूणा व प्रीति के मंगलाचरण से किया गया एवं अंत में डाॅ. जितेन्द्र वर्मा ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम में डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत, डाॅ. जुगल किशोर दाधीच, प्रो. रेखा तिवाड़ी एवं कार्यशाला के सम्भागीगण उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. पुष्पा मिश्रा ने किया।

स्थानीय लोगों को शामिल किया जावे आपदा प्रबंधन में- डाॅ. कंठ

7 फरवरी 2018। आपदा-विपदा प्रबंधन पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र के मुख्य अतिथि दिल्ली पुलिस के पूर्व पुलिस आयुक्त डाॅ. आमोद कंठ ने कहा है कि किसी भी आपदा के समय जो लोग सबसे पहले सहायता के लिये उपलब्ध होते हैं, वे सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। ये स्थानीय समुदाय के लोग ही होते हैं, जिन्हें वहां की स्थिति कीे भली भांति जानकारी होती है। लेकिन ऐसे लोग संगठित नहीं होते। आपदा प्रबंधन के लिये सबसे महत्वपूर्ण बात है कि संगठित प्रयास किये जाने चाहिये। फायर ब्रिगेड व पुलिस भी सबसे पहले पहुंचने वालों में होती है, लेकिन सबसे ज्यादा सहयोग समुदाय का ही हो सकता है। बाहरी लोगों का सहयेाग उस समय संभव नहीं होता है। स्थानीय समुदाय के आपदा प्रबंधन से जुड़ने से नियंत्रण अधिक प्रभावी हो सकता है। यहां सामुदायिक सुरक्षा एवं आपदा-विपदा प्रबंधन विषय पर आयोजित इस संगोष्ठी के सम्भागियों को सम्बोधित करते हुये उन्होंने कहा कि आपदा के लिये मशीनरी व तकनीकी सहयोग भी आवश्यक है, जो स्थानीय लोगों को उस समय नहीं मिल पाता है। इसके लिये आपदा की प्रारम्भिक तैयारी आवश्यक है। उन्होंने अपने अनुभवों को साझा करते हुये विभिन्न आपदाओं और उनसे निपटने के तरीकों के बारे में बताते हुये कहा कि समुदाय का जुड़ना आवश्यक है।

पाठ्यक्रम का हिस्सा हों आपदा प्रबंधन

जैन विश्वभारती संस्थान के कुलसचिव विनोद कुमार कक्कड़ ने अध्यक्षता करते हुये कहा कि हमारी आदत हो गई है कि हम अभियान चलते हैं, वह सफाई का हो, भ्रष्टाचार उन्मूलन का हो, सड़क सुरक्षा का हो या अन्य। लेकिन अगर हम अभियान के बजाये इन छोटी-छोटी बातों को अपनी आदतों का हिस्सा बना लें तो काफी समस्याओं का समाधान हो सकता है। उन्होंने आपदाओं की पूर्व सूचनाओं के लिये केवल मशीनरी पर निर्भर रहने के बजाये पशु-पक्षियो की आदतों व व्यवहार के अध्ययन से पूर्वाभास प्राप्त करने को महत्व दिया जाने की आवश्यकता बताई और कहा कि इससे स्थानीय लोग संकेतों को समय रहते समझ पायेंगे और आपदा से आसानी से निपट लेंगे। इसी प्रकार मानव निर्मित आपदाओं को भी हम स्वयं सुधार करके टाल सकते हैं। उन्होंने आपदा प्रबंधन पर पाठ्यक्रम तैयार करने पर जोर दिया तथा कहा कि जहां जिस प्रकार की आपदायें होती हैं, उस क्षेत्र के लिये उसी के अनुरूप कोर्स होना चाहिये, ताकि बच्चा-बच्चा आपदा पर नियंत्रण करना सीख जावे। बचाव का प्रशिक्षण आम जनता को दिया जाना चाहिये। उन्होंने बताया कि हर जगह की भौगोलिक स्थिति, लोगों की स्थिति आदि भिन्न-भिन्न होती है, हमें उसी अनुरूप उनको प्रशिक्षित करना चाहिये। उन्होंने इस दो दिवसीय कार्यशाला का संदेश सरकार तक पहुंचाये जाने की जरूरत भी बताई।

स्थानीय स्वयं सेवकों को दिया जाये प्रशिक्षण

समाज कार्य विभाग के विभागाध्यक्ष डाॅ. बिजेन्द्र प्रधान ने कहा कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ व उपभोग में लापरवाही के कारण आपदाएँ आती है। इसके लिये आपदाओं वाले क्षेत्र में वहां के लोगों में से स्वयंसेवकों का चयन करके उन्हें प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये तथा उन्हें संसाधन उपलब्ध करवाये जाने चाहिये। इससे पूर्व डाॅ. अंकित शर्मा ने दो दिवसीय कार्यशाला का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि राजस्थान के अलावा दिल्ली, हरियाणा, गुजरात आदि प्रांतों से कुल 80 सम्भागी आये। तथा अनेक एनजीओ ने भी इस कार्यशाला में भाग लिया। इसमें सभी सम्भागियों को विभिन्न प्रकार से उनकी जानकारी का आकलन किया गया, एवं उसमें ज्ञानवृद्धि की गई है। कार्यशाला में राजीव ऐमन, रचना सिद्धा, डाॅ. आमोद कंठा आदि प्रमुख लोगों ने सम्भागियों को लाभ पहुंचाया। कार्यक्रम में डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत, डाॅ. जुगल किशोर दाधीच, इन्द्राराम, डाॅ. वीणा द्विवेदी उदयपरु, अंजु शर्मा, सुनीता इंदौरिया, डाॅ. मनीष भटनागर आदि उपस्थित थे। अंत में डाॅ. जितेन्द्र वर्मा ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. पुष्पा मिश्रा ने किया।

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