‘प्राकृत वांगमय में तनाव प्रबंधन के सूत्र’ विषय पर व्याख्यान आयोजित
मन के नियंत्रण से संभव है तनाव-मुक्त होना- डॉ. तृप्ति जैन
लाडनूँ, 29 नवम्बर 2023। बैंगलुरू स्थित जैन विश्वविद्यालय के जैन अध्ययन केन्द्र की अध्यक्षा सह-आचार्या डॉ. तृप्ति जैन ने कहा है कि वर्तमान भौतिकवादी युग में तनाव उत्कृष्ट स्थिति में विद्यमान है। चारों तरफ तनाव के अनेक कारण विद्यमान हैं। तनाव क्रोध, भय चंचलता व मानसिक विकारों का जन्मदाता होता है, लेकिन आगमों का भलीभांति अध्ययन करने पर तनाव को प्रबन्धित करने में सहायक अनेक सूत्र मिल जाते हैं। वे जैन विश्वभारती संस्थान के प्राकृत एवं संस्कृत विभाग द्वारा आयोजित मासिक व्याख्यानमाला के 29वें व्याख्यान में ‘प्राकृत वांगमय में तनाव-प्रबंधन के सूत्र’ विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में अपने विचार प्रस्तुत कर रही थी। उन्होंने तनाव की विस्तृत परिभाषा एवं भेद-प्रेभेदांे को मनोवैज्ञानिक आधार पर प्रस्तुत करते हुए तनाव के मूल कारण के रूप में राग-द्वेष को माना। डॉ. जैन ने प्रशस्त तनाव एवं अप्रशस्त तनाव के रूप में प्रमुख दो भेदों का विस्तृत विवेचन किया और तनाव उत्पन्न होने में कर्मो को भी बताया। उन्होंने तनाव का आधार मन को भी बताया। सभी सिद्धान्तों को प्राकृत आगमों से उद्धृत करते हुए अनेक आगमों में वर्णित तनाव-प्रबन्धन के सूत्रों को डॉ. बताते हुए डॉ. जैन ने उनकी उदाहरण सहित व्याख्या थी। साथ ही तनाव-प्रबंधन के लिए आगमों में वर्णित मन को नियन्त्रित करने के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि यदि मन नियंत्रण में रहेगा, तो तनाव-मुक्त हुआ जा सकता हैं।
तनाव-प्रबंधन और भेद विज्ञान
इस अवसर पर प्रो. सुषमा सिंधवी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए, आगमों में वर्णित तनाव प्रबन्धन और भेद विज्ञान विषय की व्याख्या की। प्रो. दामोदर शास्त्री ने तनाव प्रबंधन में कायोत्सर्ग को प्रमुख मानते हुए कहा कि तनाव की अनुभूति केवल चेतन पदार्थ में ही होती है। उन्होंने आगमों के अनेक उद्वहरणो के माध्यम से तनाव-प्रबन्धन की व्याख्या की। अध्यक्षता करते हुए विभागाध्यक्ष प्रो. जिनेन्द्र जैन ने तनाव-प्रबंधन में कषाय विजय को प्रमुख बताया और कहा कि तीर्थंकरो के जीवन से प्रेरणा लेकर स्वयं को संयत करते हुए समता को धारण करना तनाव के प्रबंधन में मुख्य भूमिका निभा सकता है। कार्यक्रम का शुभारम्भ आकर्ष जैन के मंगलाचरण से किया गया। स्वागत एवं संयोजन डॉ. सत्यनारायण भारद्वाज ने किया तथा अंत में आभार ज्ञापन डॉ सब्यसाची सारंगी ने किया। कार्यक्रम में देश के विभिन्न क्षेत्रों से लगभग 35 प्रतिभागियों ने सहभागिता की।
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