प्रो. दूगड़ की ‘अतींद्रिय ज्ञान’ पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत
बिना इन्द्रिय और मन की सहायता से प्राप्त ही अतींद्रिय ज्ञान होता है- प्रो. जैन
लाडनूँ, 18 मई 2024। ‘अतीन्द्रिय ज्ञान’ पुस्तक को लेकर जैन विश्वभारती संस्थान के शिक्षा विभाग में पुस्तक समीक्षा प्रस्तुत करते हुए विभागाध्यक्ष प्रो. बीएल जैन ने बताया कि यह पुस्तक अतीन्द्रिय ज्ञान के विश्लेषण को प्रस्तुत करने वाली पहली महत्वपूर्ण पुस्तक है, जिससे भारतीय ज्ञान परम्परा को मजबूती मिलेगी। उन्होंने बताया कि पुस्तक में बताया गया है कि अतींद्रिय ज्ञान का अनुभव किसी भी व्यक्ति के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। मनुष्य के अंदर छिपी हुई अनेक अमूर्त शक्तियां, दिव्य शक्तियों की अनुभूति प्रतिनिधि ज्ञान की अवस्था में ही होती है। अतींद्रिय ज्ञान आत्मा को असीम ज्ञान, असीम शक्ति, असीम शांति, असीम आनंद का बोध करती है। जो ज्ञान बिना इन्द्रिय और मन की सहायता से वस्तु स्थिति का ज्ञान करता है वह ज्ञान अतींद्रिय ज्ञान कहलाता है। इस ज्ञान को भारतीय दर्शन में अलौकिक ज्ञान कहा गया है। यह गौरवपूर्ण कृति शिक्षा, ज्ञान, दर्शन और मनोविज्ञान के क्षेत्र में विपुल योगदान देगी। पुस्तक में दर्शन और परामनोविज्ञान दोनों का स्पर्श किया गया है। बताया गया है कि परमाणु विज्ञान के अनुसार मस्तिष्क में विद्यमान अल्फा तरंगे अतींद्रिय व्यवहार का कारण होती हैं। चिंतन के समय यह सबसे अधिक गतिशील होती है और जब चिंतन शांत होता है तो यह भी शांत हो जाती हैं और उस समय पर मन की अव्यक्त शक्तियों के उभरने की संभावना होती है।
11 अध्यायों में सभी दर्शनों के स्वरूप को प्रकट किया
प्रो. जैन ने बताया कि यह पुस्तक ‘अतींद्रिय ज्ञान’ के लेखक जैन विश्वभारती संस्थान के कुलपति प्रो. डॉ. बच्छराज दूगड़ हैं। यह पुस्तक के. जैन पब्लिशर्स उदयपुर द्वारा 1992 में प्रकाशित हुई थी। 176 पृष्ठों की इस पुस्तक में 11 अध्यायों में विभिन्न दर्शन में ज्ञान का स्वरूप, ज्ञान में इंद्रिय व मन की भूमिका, मीमांसक और चार्वाक दर्शन में अतींद्रिय ज्ञान, वेदों में अतींद्रिय ज्ञान, उपनिषदों में अतींद्रिय ज्ञान, त्रिपिटक साहित्य एवं बौद्ध दर्शन में अतींद्रिय ज्ञान, जैन आगम एवं दर्शन में अतींद्रिय ज्ञान, न्याय-वैशेषिक दर्शन में अतींद्रिय ज्ञान, अद्वैत वेदांत में अतींद्रिय ज्ञान, सांख्य-योग में अतींद्रिय ज्ञान, परामनोविज्ञान तथा भारतीय दर्शन के अतींद्रिय ज्ञान की अवधारणा विषयों की विवेचना की गई है। इसमें गूढ़, सूक्ष्म एवं रहस्यमयी विषयों को विश्लेषित रूप में विवेचित किया गया है।
भारतीय ज्ञान परम्परा के प्रसार में सहायक
प्रो. जैन ने समीक्षा प्रस्तुत करते हुए बताया कि भारतीय दार्शनिक ज्ञान परंपरा को सुदृढ़, सशक्त और मजबूत बनाने और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को गति-प्रगति प्रदान करने में यह पुस्तक अमूल्य अवदान प्रदान करेगी। यह पुस्तक भारतीय दार्शनिक ज्ञान परम्परा में अत्यंत ज्ञानवर्धक है। चार्वाक दर्शन साक्षात् इंद्रिय से संबंध विषय को ही ज्ञान का विषय मानता है और उसे ही सत्य मानता है। अतींद्रिय ज्ञान को वह नहीं मानता है। वेदों में प्राकृतिक शक्तियों की स्तुति पर विशेष बल दिया, प्राकृतिक शक्तियों को जाना और उन्हें अपने वशीभूत किया। अतींद्रिय ज्ञान हेतु आत्मालोचन, निष्काम कर्म और मन शुद्ध, शारीरिक नियंत्रण एवं इंद्रिय नियमन से अतींद्रिय ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। उपनिषदों में पराविद्या को अतींद्रिय ज्ञान के रूप में माना है और पराविद्या से अतीन्द्रिय ज्ञान की शिक्षा प्राप्त की जा सकती है। यह अतींद्रिय ज्ञान अक्षर, आत्मा का साक्षात ज्ञान कराता है। इसके लिए शैणकि ऋषि, महर्षि अंगिरा, ज्ञान ऋषि एवं नचिकेता संवाद प्रमाण स्वरूप हैं।
अतीन्द्रिय ज्ञान के स्वरूप
उन्होंने बताया कि पुस्तक में आया है कि जैन दर्शन ने अतींद्रिय ज्ञान को आत्मा से उत्पन्न ज्ञान माना है। वह ज्ञान मन और इंद्रियों की सहायता के बिना होता है। ज्ञान आत्मा का स्वरूप है। अतींद्रिय ज्ञान प्राप्ति के लिए जैन दर्शन त्रिरत्न के अभ्यास पर विशेष बल देता है। बौद्ध दर्शन ने अतींद्रिय प्रत्यक्ष को निर्विकल्प माना है, क्योंकि जो ज्ञान विकल्प होता है, वह स्पष्ट प्रतिभास नहीं हो सकता है। न्याय-वैशेषिक अतींद्रिय ज्ञान को अलौकिक सन्निकर्ष से उत्पन्न मानता है। अद्वैत वेदांत दर्शन में ब्रह्म ज्ञान को ही अतींद्रिय ज्ञान माना है। कार्यक्रम में शिक्षा विभाग के डॉ. मनीष भटनागर, डॉ. विष्णु कुमार, डॉ. अमिता जैन, डॉ. आभा सिह, डॉ. गिरिराज भोजक, डॉ. गिरधारीलाल शर्मा, सुश्री प्रमोद ओला, खुशाल जांगिड, सुश्री स्नेहा शर्मा आदि उपस्थित रहे।
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