देश का अनूठा विश्वविद्यालय, जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) जहां हर चीज अलहदा है
वृद्धों व साधुओं को शिक्षा, योग व जीवन विज्ञान से व्यक्तित्व विकास, जीवन मूल्यों व मानव कल्याण को प्राथमिकता, संस्कार व कॅरियर निर्माण को बनाया शिक्षा के साथ आवश्यक
लाडनूँ, 16 मई 2018। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) पूरे देश में एक अनोखा विश्वविद्यालय कहा जा सकता है। यहां अन्य विश्वविद्यालयों से बिलकुल अलग माहौल है, जहां अनुशासन, चरित्र, शांति और सुरम्यता का वास मिलेगा। विद्यार्थियों में कहीं कोई उच्छृंखलता, असौम्यता या आवेश देखने को नहीं मिलेगा। सभी बिल्कुल शांत, अनुशासित व सद्प्रवृतियों से युक्त मिलेंगे। यहां का हरीतिमा युक्त प्राकृतिक, शांत, मनोरम व आध्यात्मिक वातावरण बरबस ही लोगों को आकर्षित करने में सक्षम है। जैन विद्या व प्राच्य दर्शन के विकास, प्रसार, अध्ययन व शोध के उद्देश्य से संस्थापित इस संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में प्राकृत, संस्कृत, योग व जीवन विज्ञान, अहिंसा एवं शांति के साथ अन्य समस्त आवश्यक शैक्षणिक विषयों एवं स्किल डेवलपमेंट के विषयों का अध्ययन भी करवाया जाता है। यह संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) मूल्यपरक शिक्षण-प्रशिक्षण के लिए समर्पित है। इस संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) की विशेषताओं पर गौर करेंगे तो आश्चर्य अवश्य होगा कि इस युग में भी कोई इस तरह का शिक्षण केन्द्र होगा जो प्राचीन गुरूकुलों और आधुनिक शिक्षण प्रणाली का समन्वित स्वरूप हों। इस संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) की विशेषता है कि यहां जीविकोपार्जन के साथ जीवन जीने की शिक्षा दी जाती है। इसकी गतिविधियां लाभ के लिए संचालित नहीं होकर मानव कल्याण के निमित संचालित होती है।
ध्यान व प्रार्थना से शुरू होते हैं कार्य
इस संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में चाहे विद्यार्थी हों या शिक्षक अथवा गैर शैक्षणिक कर्मचारी - सभी अपना कार्य नियमित प्रार्थना व ध्यान से शुरू करते हैं। यहां प्रतिदिन समस्त कर्मचारियों को प्रार्थना व ध्यान करने होते हैं तथा इसके पश्चात उनकी कार्यस्थल की दिनचर्या शुरू की जाती है। यही कारण है कि यहां का समस्त स्टाफ स्वभाव से विनम्र, अनुशासित, शांत व व्यवहारिक है। नियमित ध्यान के कारण उनके स्वभाव, व्यवहार व जीवनचर्या में बदलाव आता है और वह उनके कार्य में परिलक्षित होता है। जब स्टाफ या शिक्षक संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में नम्र व शांत होंगे तो उनके आचरण को देखकर संस्कारित होने वाले विद्यार्थी भी निश्चित रूप से उनके अनुरूप ही होंगे।
अध्यात्मिक अनुशासन और दिशा-निर्देशन
यह देश का पहला संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) होगा, जिसमें कुलपति एवं कुलाधिपति के अतिरिक्त एक पद और तय किया गया है, और वह है अनुशास्ता का पद। यह पद संस्थान का संवैधानिक पद है। अनुशास्ता के पद पर धर्माचार्य होते हैं, जो संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) को अपने नैतिक निर्देशों से लाभान्वित करते हैं। जैन श्वेताम्बर तेरापथ धर्मसंघ के नौंवे आचार्य आचार्यश्री तुलसी यहां इसके अनुशास्ता थे। उनके बाद द्वितीय अनुशास्ता के रूप में आचार्यश्री महाप्रज्ञ रहे और वर्तमान में आचार्य श्री महाश्रमण इस संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के अनुशास्ता है। इनकी आध्यात्मिक वैचारिक रश्मियों से सम्पूर्ण संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) आलोकित होता है और उनकी तेजस्विता से प्रभावित होता है। यह उनका ही प्रभाव है कि यहां आने वाला हर विद्यार्थी स्वतः ही अपने स्वभाव में परिवर्तन पाता है। संस्थान के समस्त शिक्षक एवं अन्य कर्मचारी भी इन धर्मगुरूओं के प्रभामंडल से ओजस्वित रहते हैं।
प्रोफेसरों व व्याख्याताओं की मानद सेवायें
इस मायने में भी यह संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) सबसे अलहदा है कि यहां अपनी मानद सेवायें प्रदान करने वाले प्रोफेसरों व व्याख्याताओं की तादाद काफी है। यहां उच्च शिक्षा प्राप्त पीएचडी व नेट किये हुए समण-समणियां भी अपनी अध्यापन सेवायें प्रदान करते हैं। उनकी निःशुल्क सेवाओं का लाभ यहां संस्थान को लगातार मिलता रहा है। उनके द्वारा शिक्षण कार्य करवाये जाने से विद्यार्थियों में स्वतः ही अनुशासन, समयबद्धता, चरित्र, सामाजिक समर्पण आदि गुणों का विकास संभव हो पाता है। समणियों की निःस्वार्थ भाव से की जाने वाली संस्थान की सेवा अपने आप में अनूठी है। इनकी सेवायें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के मापदंडों पर भी खरी उतरती है।
चारित्रिक व नैतिक वार्तालाप-व्याख्यान
संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में समय-समय पर विभिन्न धर्मगुरूओं, संत-महात्माओं एवं महत्वपूर्ण हस्तियों-विद्वानों के प्रवचन-व्याख्यान, वार्तालाप, चर्चा आदि का आयोजन किया जाता है, जिससे संस्थान को चारित्रिक व नैतिक सम्बल प्राप्त होता है। जीवन के प्रति दृष्टिकोण, नैतिकता के प्रसार, चारित्रिक क्षमता वृद्धि आदि का लाभ इनसे विद्यार्थी उठा पाते हैं। इससे उनमें सम्मान की भावना, सांस्कृतिक मूल्यों का विकास और जीवन मूल्यों का समावेश संभव होता है। यहां संचालित विभिन्न व्याख्यानमालाओं में विभिन्न विद्वानों द्वारा दिया जाने वाला प्रस्तुतिकरण विद्यार्थियों में ज्ञान वृद्धि के साथ उनके जीवन में उपयोगी सिद्ध होने वाला होता है।
मूल्यपरक शिक्षा के लिये समर्पित संस्थान
इस संस्थान की स्थापना के पीेछे आचार्य तुलसी की दूरदृष्टि रही थी और नैतिक जीवन मूल्यों की समाज में पुनर्स्थापना को मुख्य उद्देश्य बनाकर ही इसे शुरू किया गया था। अपनी संस्थापना से लेकर आज तक यह संस्थान मूल्यपरक शिक्षण-प्रशिक्षण के लिये समर्पित है। यहां जीवन विज्ञान की शिक्षा को पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया है तथा पृथक विषय के रूप में भी जीवन विज्ञान की डिग्री दी जाती है। जीवन विज्ञान में जीवन मूल्यों पर पूरा ध्यान दिया जाता है। यहां का आध्यात्मिक वातावरण, संतों का सामीप्य और विद्यार्थी-निमित तय मर्यादाओं के पालन से विद्यार्थियों में चारित्रिक विकास एवं मूल्यों का समावेश होने से उनका जीवन उज्जवल बन पाता है। इस संस्थान का ध्येय वाक्य है- ‘णाणस्स सार मायारो‘ अर्थात ज्ञान का सार आचार है। इस ध्येय वाक्य के अनुरूप यहां दुनियावी शिक्षा के साथ व्यक्तिगत आचरण की शुद्धि पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
भोजन एवं आवास की निःशुल्क सुविधा
संभवतः यह पहला संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) होगा, जहां विद्यार्थियों को शिक्षा के साथ-साथ निःशुल्क छात्रावास एवं भोजन की सुविधा उपलब्ध है। यहां जैन विद्या, प्राकृत एवं संस्कृत भाषा में स्नातकोत्तर करने के लिए प्रवेश करने वाले विद्यार्थियों को यह सुविधा दी जाती है। इनमें अध्ययन करने वाले छात्र-छात्राओं के लिये यहां अध्ययन की सुविधा भी पूर्ण रूप से निःशुल्क है। अन्य पाठ्यक्रमों में भी शुल्क अतिन्यून होने व छूट उपलब्ध होने से विद्यार्थियों को आर्थिक दृष्टि से नहीं सोचना पड़ता, फिर यहां छात्रवृति की सुविधा भी होने से विद्यार्थियों को पढाई बोझ नहीं लग पाती है।
शोध-परियोजनाओं के लिये खर्च की व्यवस्था
जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में शोध को विशेष महत्व दिया जाता है, इसके लिये विभिन्न प्रोत्साहन योजनाओं का संचालन भी संस्थान द्वारा किया जाता रहा है। नवाचारी शोध प्रोजेक्ट के तहत पायलट प्रोजेक्ट के लिये 50 हजार, माइनर प्रोजेक्ट के लिये 2 लाख, और मेजर प्रोजेक्ट के लिये 10 लाख रूपयों का वितीय सहयोग संस्थान की ओर से उपलब्ध करवाया जाता है। इस राशि का उपयोग शोधकर्ता अपने शोध कार्य के लिये उपकरण, पुस्तकें, जर्नल, स्टेशनरी, प्रिंटिंग, विश्लेषण सेवायें प्राप्त करने तथा आवश्यक यात्रा, फील्ड वर्क, सेमिनार, वर्कशाॅप आदि के लिये कर सकता है। कोई संस्थान अपने खर्च से शोध परियोजनाएं संचालित करें, दुर्लभ है।
वृद्धों व साधुओं के लिए भी पढाई की व्यवस्था
जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) ने जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुके लोगों में भी पढाई के प्रति ललक जगा दी है। यहां के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय से बड़ी संख्या में देश भर के बड़ी आयु के लोग बीए से लेकर एमए और पीएचडी तक का अध्ययन व शोध कर रहे हैं एवं डिग्री प्राप्त कर रहे हैं। यहां 60 से 80 वर्ष की आयु में भी पढने वाले विद्यार्थी लगातार रहे हैं। इनके अलावा यहां अपरिग्रही साधु-साध्वियों के लिये निःशुल्क शिक्षण व्यवस्था उपलब्ध हैं वे देश में कहीं भी भ्रमण करते हुये अपनी पढाई जारी रख सकते हैं। बड़ी संख्या में साधु-साध्वियों ने यहां से उच्च शिक्षा प्राप्त करके डिग्रियां हासिल की हैं। पढाई को किसी भी कारण से बीच में छोड़ देने वाले जीवन के किसी भी हिस्से में अपनी पढाई वापस शुरू कर सकते हैं।
स्किल बेस्ड ट्रेनिंग व रोजगार निर्देशन
यहां संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में स्किल डेवलेपमेंट की पूरी व्यवस्था उपलब्ध है। योग, प्राकृतिक चिकित्सा के लिये यहां 3 माह का प्रमाण पत्र कार्यक्रम संचालित किया जाता है। इसके अलावा ब्यूटी कल्चर कार्यक्रम में ब्यूटी पार्लर खोलने, केश सज्जा करने, दुल्हन तैयार करने आदि का कोर्स करवाया जाता है। इलेक्ट्रिक एवं इलेक्ट्रोनिक्स उपकरणों की मरम्मत व रखरखाव सम्बंधी प्रमाण पत्र कार्यक्रम भी युवाओं को निःशुल्क प्रदान करने की व्यवस्था है। यहां समर प्रोग्राम के अन्तर्गत शोर्ट टर्म कोर्सेज करवाये जाते हैं, जिनमें कुकिंग प्रशिक्षण, योगा ट्रेनिंग, इंटीरियर डिजाईन, क्राफ्टिंग एंड पेंटिंग, स्पोर्टस ट्रेनिंग, बेसिक कम्प्यूटर, हेयर एंड स्किन केयर, स्पोकन इंगलिश, डांस व मार्शल आर्ट के कोर्स शामिल हैं। यहां समाज कार्य विभाग के अन्तर्गत एम.एस.डब्लू. का दो वर्षीय स्नातकोतर कोर्स तो शत प्रतिशत प्लसमेंट वाला है। बीएड व एमएड के कोर्स भी कॅरियर के लिये बेहतरीन सिद्ध हो रहे हैं। इनके अलावा कॅरियर काउंसलिंग, गाईडेंस, कॅरियर व्याख्यान, ज्ञान केन्द्र में रोजगार सम्बंधी सहायता आदि के माध्यम से विद्यार्थियों को कॅरियर निर्माण की दिशा में सहायता मिलती है।
अंग्रेजी संवाद एवं कम्प्यूटर प्रशिक्षण में दक्षता
यहां सभी के लिये अंग्रेजी सम्भाषण एवं सम्प्रेषणता की तरफ पूरा ध्यान दिया जाता है। विद्यार्थियों को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा के लिये तैयार करने के लिये अंग्रेजी व कम्प्यूटर में दक्षता आवश्यक होती है और इन दोनों ही विधाओं पर यहां पूरा जोर दिया जाता है। यहां हर विद्यार्थी के लिये अंग्रेजी माध्यम नहीं होने पर भी अंग्रेजी का ज्ञान व संवाद विधा अवश्य सिखाई जाती है। इसी तरह से कंप्यूटर का ज्ञान भी सबको करवाया जाता है, ताकि विद्यार्थी कहीं भी पीछे नहीं रह पाये।
महिला शिक्षा महत्वपूर्ण
यह संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) एक तरह से महिला शिक्षा को समर्पित कहा जा सकता है। यहां महिला शिक्षा पर सबसे ज्यादा जोर दिया जाता है। संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के अन्तर्गत संचालित आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में बीए, बीकाॅम, बीएससी के पाठ्यक्रमों में केवल बालिकाएँ ही प्रवेश ले सकती हैं। इसी प्रकार यहां शिक्षा विभाग में संचालित बीएड, एमएड, बीए-बीएड, बीएससी-बीएड पाठ्यक्रमों में भी केवल कन्याओं के लिये ही प्रवेश रक्षित है। आचार्य तुलसी की सोच के अनुरूप इस संस्थान में महिला शिक्षा को ही प्राथमिकता दी जाती है। यहां बालिकाओं की शिक्षा के साथ सुरक्षा, आत्मरक्षा, उचित देखभाल एवं उनके सर्वांगीण विकास पर पूरा ध्यान दिया जाता है।
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