जैन विश्वभारती संस्थान में गुरू पूर्णिमा पर कार्यक्रम का आयोजन

अज्ञान मिटा कर ज्ञान का दीप जलाने वाला ही गुरू- मुनि जयकुमार

लाडनूँ, 27 जुलाई 2018। जैन विश्वभारती  संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में गुरू पूर्णिमा पर कार्यक्रम में मुनिश्री जयकुमार ने कहा है कि जो भीतर की गुरूता को, अन्तर की चेतना को और विवेक को जागृत करें वही गुरू होता है। वे यहां जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के महाप्रज्ञ सभागार में नियमित ध्यान व प्रार्थना के पश्चात गुरू पूर्णिमा पर्व को लेकर समस्त स्टाफ को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि गुरू की पहचान यह है कि वह अज्ञान को खत्म करता है, भीतर में ज्ञान के दीप को प्रज्ज्वलित करता है। गुरू अच्छे मार्ग को प्रशस्त करता है और करणीय व अकरणीय कर्म के विवेक को जागृत करता है। गुरू अपने शिष्य में भी गुरूतत्व का जागरण करता है। इससे पूर्व मुनिश्री ने सबको गहरे ध्यान के प्रयोग करवाये। इस अवसर पर संस्थान के कुलसचिव विनोद कुमार कक्कड़, उप कुलसचिव डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत, दीपाराम खोजा, डाॅ. बी. प्रधान, विजयकुमार शर्मा, प्रो. रेखा तिवाड़ी, डाॅ. विकास शर्मा, डाॅ. अशोक भास्कर आदि उपस्थित थे। इसके अलावा संस्थान के शिक्षा विभाग में भी गुरू पूर्णिमा पर्व मनाया गया। विभागाध्यक्ष प्रो. बीएल जैन ने इस अवसर पर कहा कि गुरू के विचारों को आत्मसात करें, वे हमारे संकटों में पाथेय प्रदान करेंगे। डाॅ. आभासिंह, छात्राध्यापिका कंचन कंवर, सरिता फिरौदा, पल्लवी, अंजलि, पूजा गौड़ आदि ने भी अपने विचार कविता, भाषण व कहानी के रूप में व्यक्त किये। कार्यक्रम में डाॅ. मनीष भटनागर, डाॅ. बी. प्रधान, डाॅ. विष्णु कुमार, डाॅ. अमिता जैन, डाॅ. सरोज राय, डाॅ. गिरधारी लाल, मुकुल सारस्वतए दिव्या जांगिड़ आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन देवी लाल ने किया।

गुरू शिष्य को ढालता है - प्रो. त्रिपाठी

महर्षि वेदव्यास के जन्मजयन्ती के उपलक्ष्य में गुरू पूर्णिमा पर्व मनाया जाता है। वैसे पुराणों में भगवान शिव को आदि गुरू माना गया है। उन्होंने शनि और परशुराम को शिष्य के रूप में शिक्षा दी थी। इसलिये उन्हें आदि गुरू माना गया है। यह बात आचार्य कालु कन्या महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने गुरू पूर्णिमा पर्व पर आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुये कही। उन्होंने बताया कि भारतीय संस्कृति में गुरू शिष्य की बहुत ही उज्ज्वल परम्परा रही है। शंकराचार्य को भी उनके गुरू गौड़पाद ने बनाया था। रामबोला को तुलसीदास गुरू नरहरिदास ने बनाया था तथा शिवाजी प्रसिद्ध हुए अपने गुरू रामदास की शिक्षा के कारण। विवेकानन्द को भी उनके गुरू रामकृष्ण ने बनाया था। सिकन्दर ने अपने गुरू अरस्तु से एक बार कहा था कि एक अरस्तु सैकड़ों सिकन्दर बना सकता है, किन्तु सैकड़ों सिकन्दर मिलकर भी एक अरस्तु नहीं बना सकते। ऐसी होती है गुरू की महिमा। उन्होंने विद्यार्थियों को प्रेरित करते हुए कहा कि निर्मल भावों से गुरू का आदर और सम्मान करना चाहिए। इस अवसर पर संस्थान के हिन्दी व्याख्याता अभिषेक चारण द्वारा आदिकाल से आधुनिक काल तक गुरू के महत्त्व को व्याख्यायित किया गया। कार्यक्रम का संचालन सोमवीर सागवान द्वारा किया गया।

Read 5182 times

Latest from