जैन विश्वभारती संस्थान के प्राकृत एवं संस्कृत विभाग के तत्वावधान में दस दिवसीय संस्कृत संभाषण कार्यशाला का आयोजन
संस्कृत हमारे रक्त में समाई है, इसे बाहर निकालें- श्रवण कुमार
लाडनूँ, 16 जनवरी 2019। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के प्राकृत एवं संस्कृत विभाग के तत्वावधान में संस्कृत भारती जोधपुर के सहयोग से दस दिवसीय संस्कृत संभाषण कार्यशाला का उद्घाटन बुधवार को समारोह पूर्वक किया गया। संस्कृत भारती जोधपुर के प्रशिक्षक श्रवणकुमार ने इस अवसर पर कहा कि संस्कृत हमारे रक्त में है, उसे बाहर निकालने की जरूरत है। संस्कृत मधुर एवं सरस भाषा है, उसकी सरसता को पहचानने की जरूरत है। हम जैसे-जैसे अभ्यास करेगें, वैसे-वैसे सफलता मिलती जायेंगी। कार्यक्रम के अध्यक्ष संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने बताया कि सीखने के लिए वैराग्य और अभ्यास की अपेक्षा होती है। वह अभ्यास दीर्घकाल तक निरंतर एवं समर्पण के साथ करना चाहिए। प्रो. दामोदर शास्त्री ने कहा कि संस्कृत भाषा से ही भारत देश का गौरव है।
केवल संस्कृत विद्वान ही होता है पण्डित
समणी नियोजिका मल्लीप्रज्ञा ने कहा कि संस्कृत भाषा यन पदं प्रयुमजीत्य अर्थात् स्वयं ही पद देती है। इसलिए संस्कृत भाषा के विद्वान को ही पण्डित का पद् मिलता है। प्राकृत व संस्कृत विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. समणी संगीतप्रज्ञा ने प्रारम्भ में अपने स्वागत-भाषण में संस्कृत भाषा का महत्व बताया तथा कहा कि जैसे छोटा दीपक भी महत् अंधकार को हरता है, वैसे ही यह कार्यशाला संस्कृत भाषा को जीवंत करेगी। कार्यक्रम का प्रारम्भ मुमुक्षु बहनों के संस्कृत गीत में प्रस्तुत मंगालचरण से किया गया। कार्यक्रम में समागत अतिथियों का शाल्यार्पण से बहुमान किया गया। अंत में डॉ. सत्यनारायण भारद्वाज ने आभार ज्ञापन किया। कार्यक्रम का संचालन विशुद्ध संस्कृत भाषा में समणी सम्यक्त्वयप्रज्ञा ने किया। कार्यक्रम में अनेक प्राध्यापकगण, समणीवृन्द, मुमुक्षु बहनें, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।
संस्कृत सभी भाषाओं के शब्दों की जननी होने के साथ इसका व्याकरणी विश्व व्याकरण है- शर्मा
25 जनवरी 2019। संस्कृत भारती जोधपुर के सहमंत्री लीलाधर शर्मा ने कहा है कि संस्कृत विश्व की समस्त भाषाओं की जननी है तथा सभी क्षेत्रों की भाषाओं में शब्दों का जनन संस्कृत से ही हुआ है। संस्कृत पठनयोग्य एवं पुरातन भाषा होते हुये भी चिर यौवना भी है। संस्कृत में जो कुछ है, वह अन्यत्र भी मिलेगा और जो संस्कृत में नहीं है, वह अन्यत्र कहीं नहीं मिलेगा। उन्होंने यहां जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय के प्राकृत व संस्कृत विभाग के तत्वावधान में आयोजित दस दिवसीय संस्कृत सम्भाषण कार्यशाला के समापन समारेाह में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुये विभिन्न अंग्रेजी शब्दों की उत्पति के बारे में जानकारी दी और बताया कि वे सब संस्कृत से ही निकले हैं। राजस्थानी भाषा के बकरी, सांगोपांग, उंदरा, राली आदि शब्दों का उदाहरण एवं उनके मूल संस्कृत शब्दों के बारे में बताते हुये शर्मा ने कहा कि राजस्थानी भाषा तो वैदिक संस्कृत के नजदीक है। इसी प्रकार उन्होंने थाई भाषा का जिक्र करते हुये बताया कि थाई भाषा के सभी शब्द संस्कृत के हैं। शर्मा ने पाणिनी के व्याकरण का उदाहरण प्रस्तुत करते हुये बताया कि संस्कृत केवल सर्व भाषाओं की जननी ही नहीं बल्कि इसका व्याकरण भी विश्व व्याकरण है। पाणिनी व्याकरण केवल संस्कृत का ही नहीं बल्कि विश्व का व्याकरण है। शर्मा ने संस्कृत भाषा को विज्ञान के लिये भी सबसे उपयुक्त बताते हुये कहा कि महर्षि अगस्त्य ने बैटरी बनाने का ज्ञान सबसे पहले लिखा था। इसी प्रकार भागवत पुराण में हृदयरोग की शल्य चिकित्सा का वर्णन उपलब्ध है। संगीत की उत्पति भी संस्कृत से बताते हुये उन्होंने विभिन्न संस्कृत छंदों के आधार पर बने हू-बहू फिल्मी गानों व राजस्थानी लोकगीतों के उदाहरण दिये।
करोंड़ों शब्दों से समृद्ध है संस्कृत
समारोह की अध्यक्षता करते हुये कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने बताया कि भाषा की उत्पति गति से हुई है। गति से ध्वनि पैदा होती है। ध्वनि धीरे-धीरे शब्दों का रूप लेने लगती है और उससे भाषा बनती है। श्रषि-मुनियों ने ध्वनियों को पकड़ा और उनसे शब्द बनाये व भाषा का विकास हुआ। किसी भी भाषा का विकास व्यवहार से होता है। संस्कृतमें सम्भाषण अनवरत चलने से भाषा विकसित होगी। संस्कृत में करोड़ों शब्द हैं। इसमें 1700 धातुयें हैं, 70 प्रत्यय हैं और 80 उपसर्ग हैं। इनसे 27 लाख शब्द बने और सामासिक शब्द जोड़े जावें तो एक करोड़ से उपर शब्द बनते हैं। यह विश्व की सबसे समृद्ध भाषा है। आज के वैश्वीकरण के युग में हमारी भाषा को विज्ञान के विकास में सहायक बनना जरूरी है। आर्टिफिसियल इंटेलीजेंसी (कृत्रिम बुद्धि), रोबोट, कम्प्यूटर, विज्ञान व अंतरिक्ष के लिये उपयोगी भाषा केवल संस्कृत है। संस्कृत शाश्वत भाषा है। इसे हमारे रोजमर्रा के व्यवहार में लाया जाना आवश्यक है। प्रो. दूगड़ ने कहा कि भाषा के रूप में ही संस्कृति व सभ्यता विकसित होती है। संस्कृत भारत के विकास में सहायक है। संस्कृत भाषाकी विशेषताओं के बारे में बताते हुये उन्होंने कहा कि संस्कृत के सही उच्चारण से बीमारियां मिट जाती हैं।
सभी 100 सम्भगियों को प्रमाण पत्रों का वितरण
फ्रांस से आई शोध छात्रा निओमि बोरा ने इस अवसर पर संस्कृत में अपना वक्तव्य प्रस्तुत करते हुये अपने कार्यशाला के अनुभव प्रस्तुत किये और संस्कृत गीतिका गाकर सुनाई। राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित प्रो. दामोदर शास्त्री ने भाषा की शुद्धता बनाये रखने पर जोर दिया तथा कहा कि संस्कृत सम्भाषण में कौशल की वृद्धि होने में कार्यशाला सहायक सिद्ध होगी। कार्यक्रम में मुमुक्षु सारिका, प्रशांत जैन व पूजा ने अपने कार्यशाला के अनुभव सुनाये। छात्रा नीलू ने संस्कृत गीत पर नृत्य की प्रस्तुति दी। प्राकृत एवं संस्कृत विभाग की विभागाध्यक्ष डाॅ. समणी संगीत प्रज्ञा ने प्रारम्भ में स्वागत भाषण एवं कार्यशाला का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। विपुल जैन द्वारा प्रस्तुत संस्कृत मंगलाचरण से कार्यक्रम का प्रारम्भ किया गया। समारोह में सभी 100 सम्भागियों को प्रमाण पत्रों का वितरण किया गया। अंत में डाॅ. सतयनारायण भारद्वाज ने आज्ञार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन समणी धृतिप्रज्ञा ने किया।

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