जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में प्रज्ञा संवर्द्धिनी व्याख्यानमाला आयोजित
हमें धर्म को प्राचीरों से बाहर निकालना होगा- डाॅ. कोठारी
लाडनूँ, 9 अप्रेल 2019। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के महादेवलाल सरावगी अनेकांत शोधपीठ के तत्वावधान में आयोजित आचार्य महाप्रज्ञ प्रज्ञा संवर्द्धिनी व्याख्यानमाला के अन्तर्गत समाज को आचार्य महाप्रज्ञ का अवदान विषय पर यहां ऑडिटोरियम में राजस्थान पत्रिका के मुख्य-सम्पादक प्रखर विद्वान डाॅ. गुलाब कोठारी का व्याख्यान आयोजित किया गया। व्याख्यान में डाॅ. कोठारी ने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ ने समाज को रूपांतरित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया। इसके लिये उन्होंने कभी भी स्वयं को आगे नहीं रखा। क्योंकि जो अपने को गौण रख कर चलता है, वहीं बड़ा हुआ करता है। जो खुद के लिये जीता है, उससे छोटा आदमी धरती पर कोई नहीं होता। प्रत्येक बीज पेड़ बनना चाहता है, लेकिन उसके लिये जरूरी है कि वह स्वयं को जमीन में गाड़ देवे। उन्होंने आचार्य महाप्रज्ञ की अहिंसा पर चर्चा करते हुये कहा कि अहिंसा तभी आ सकती है, जब हम हिंसा के कारणों को दूर कर देवें। जब तक हिंसा के संस्कार समाप्त नहीं होंगे, अहिंसा नहीं आ सकती, इसके लिये अहिंसा के संस्कार हमें भरने होंगे। डाॅ. कोठारी ने महाप्रज्ञ की उदारवादी व समभाव प्रवृति के बारे में बताते हुये कहा कि हमें संकुचित नहीं बनना चाहिये, बल्कि सभी मान्यताओं का सम्मान सीखना चाहिये। हमने महावीर के भी टुकड़े कर लिये हैं और संकीर्ण होते जा रहे हैं। दिगम्बर संत अपने आपको अपने पंथ के अनुयायियों से घिरा हुआ पाता है, तो वह खुश होता है और श्वेताम्बर संत अपने सम्प्रदाय के लोगों के बीच खुश रहते हैं। इस प्रकार की भावना से बाहर निकलने की जरूरत है। धर्म को हमें प्राचीरों से बाहर निकालना होगा।
डाॅ. कोठारी को प्रोफेसर एमिरेट्स की नियुक्ति
संस्थान के कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने इस अवसर पर डाॅ. गुलाब कोठारी को जैन विश्वभारती संस्थान की ओर से उन्हें मानद रूप से एमिरेट्स प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति प्रदान की। प्रो. दूगड़ ने अपने सम्बोधन में डाॅ. कोठारी के प्रति आभार ज्ञापित किया तथा कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ के जीवन में सरलता, समर्पण व सापेक्षता निहित थी। महाप्रज्ञ का व्यक्तित्व ही ऐसा था कि उन्हें देखकर ही अहिंसा समझ में आ जाती थी और उनके विचारों और वक्तव्यों में सापेक्षता-अनेकांत का प्रयोग देखने को मिलता है। वे परस्परता के बारे में बताते थे। उनका मानना था कि विरोध हमारे मन की कल्पना है। पक्ष के साथ प्रतिपक्ष आवश्यक होता है। दोनों पक्ष ही वैचारिक सौंदर्य होते हैं। उन्होंने विरासत को अक्षुण्ण रखने की आवश्यकता बताई। कार्यक्रम में समाजसेवी भागचंद बरड़िया भी विशिष्ट अततिथि के रूप में मंचस्थ थे। प्रारम्भ में दूरस्थ शिक्षा निदेशक प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने अतिथियों का परिचय प्रस्तुत किया। शोधपीठ की निदेशिका प्रो. समणी ऋजुप्रज्ञा ने विषय प्रवर्तन किया तथा मुमुक्षु बहनों ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. योगेश कुमार जैन ने किया। व्याख्यानमाला में पर्यावरणविद् बजरंगलाल जेठू, ललित वर्मा, आलोक खटेड़, शांतिलाल बैद, लक्ष्मीपत बैंगानी, प्रो. बीएल जैन, डाॅ. अमिता जैन, सुनिता इंदौरिया, डाॅ. बिजेन्द्र प्रधान, डाॅ. गिरीराज भोजक, डाॅ. पंकज भटनागर, डाॅ. पुष्पा मिश्रा, डाॅ. भाबाग्रही प्रधान आदि उपस्थित थे।
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