जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में मासिक व्याख्यान माला का आयोजन

गीता दर्शन में निष्काम कर्म सर्वोपरि - प्रो. त्रिपाठी

लाडनूँ, 3 अगस्त 2019। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय में शनिवार को इस सत्र की पहली मासिक व्याख्यान माला में प्राचार्य प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी द्वारा "गीता दर्शन में निष्काम कर्म" विषय पर व्याख्यान दिया गया। प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि महर्षि वेदव्यास द्वारा लिखित गीता के 18 अध्यायों में ज्ञान, भक्ति एवं कर्म की त्रिवेणी बही है, लेकिन इन तीनों में भी कर्म को सर्वोपरि माना गया है। योग में स्थिर रह कर ही कर्म किया जा सकता है। चित के व्यापार का निरोध ही योग है। सुख और दुख की स्थिति में आत्म नियंत्रण की आवश्यकता होती है एवं आसक्ति का त्याग कर आत्म नियंत्रण रूपी सिद्धि प्राप्त की जा सकती है। प्रो. त्रिपाठी ने आगे कहा कि चन्द्रमा व सूर्य जैसे तेजपुंजों का भी अस्त होना निश्चित होता है, लेकिन वे इससे निराश नहीं होते, बल्कि नित नई ऊर्जा के साथ उदय होते हैं। अतः उनके इस ऊर्जाक्रम से सीख लेनी चाहिए। कर्म में दक्षता व सिद्धस्थता को योग मानते हुए कहा कि मनुष्य को आसक्ति व तृष्णा से परे रहना चाहिए, क्योंकि तृष्णा एक भंयकर रोग है और कामनाओं के उपभोग से कामनाएं कभी शान्त नहीं होती जैसे अग्नि में घी डालते रहने से अग्नि कभी शांत नहीं होती। गीता में कर्मरत सन्तोष को सबसे बड़ा धर्म माना है। कर्तव्य निर्वहन की ललक सदैव सर्वोपरि होनी चाहिए। पद के अनुरूप कार्य होता रहे तो समाज में कभी अराजकता नहीं फैलती अतः कर्तव्य पथ पर सदैव सजग रहकर आगे बढने की सीख दी। इससे पूर्व मासिक व्याख्यान माला के संयोजक सोमवीर सांगवान द्वारा प्राचार्य प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी को व्याख्यान हेतु आमंत्रित किया गया। इस दौरान महाविद्यालय के व्याख्याता डॉ. प्रगति भटनागर, कमल कुमार मोदी, डॉ. बलबीर सिंह, अभिषेक चारण, शेरसिंह, मांगीलाल, अभिषेक शर्मा, श्वेता खटेड़ एवं घासीलाल शर्मा उपस्थित रहे।

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