जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्ववि़द्यालय) में आचार्य महाप्रज्ञ की पुस्तक ‘‘कैसी हो इक्कीसवीं शताब्दी‘‘ पुस्तक समीक्षा
बौद्धिक शिक्षा के साथ मूल्यपरक शिक्षा, जीवन विज्ञान एवं अहिंसा प्रशिक्षण आवश्यक हो
लाडनूँ, 16 दिसम्बर 2019। आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी वर्ष समारोह के अन्तर्गत संचालित कार्यक्रमों के तहत जैन विश्वभारती संस्थान के आचार्य कालू कन्या महाविद्यालय के कॉन्फ्रेंन्स हॉल में पुस्तक समीक्षा कार्यक्रम का आयेाजन किया गया। कार्यक्रम में श्वेता खटेड़ ने आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा रचित पुस्तक ‘‘कैसी हो इक्कीसवीं शताब्दी‘‘ की समीक्षा प्रस्तुत करते हुये बताया कि आचार्य महाप्रज्ञ ने अहिंसा के अर्थ में स्वस्थ मानव के निर्माण तथा स्वस्थ समाज के निर्माण की कल्पना की, जो आचार्य महाप्रज्ञ की मौलिक सोच की उन्नायक है। इसमें वर्तमान शिक्षा प्रणाली में कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तनों की अपेक्षा की बात भी कही गयी है। महाप्रज्ञ ने इस पुस्तक में लिखा है कि बौद्धिक शिक्षा के साथ-साथ विद्यार्थियों को मूल्यपरक शिक्षा, जीवन विज्ञान प्रशिक्षण तथा अहिंसा का प्रशिक्षण अनिवार्य रूप से दिया जाना चाहिए। इस पुस्तक को कुल आठ अध्यायों में विभक्त किया गया है। पुस्तक में वर्णित प्रत्येक अध्याय को विस्तार से बताते हुए खटेड़ ने 20 वीं शताब्दी के इष्ट अनिष्ट परिणामों का उल्लेख किया एवं इस पुस्तक में आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा इक्कीसवीं शताब्दी में अनिष्ट परिणामों के समाधान हेतु सुझाव दृष्टिगत किये। आत्मतुला के सिद्धान्त, अहिंसा के संस्कार, संयमित जीवनशैली पर भी प्रकाश डाला तथा वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पुस्तक की सार्थकता को सिद्ध करते हुए पुस्तक की महत्ता पर प्रकाश डाला। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी ने पुस्तक एवं श्वेता खटेड़ द्वारा की गई पुस्तक समीक्षा की तारीफ करते हुए कहा कि ऐसी पुस्तकों का सतत् अध्ययन समाज को विसंगतियों से बचाता है एवं स्वच्छ मानसिकता के विकास में सहायक है। उन्होनें सभी व्याख्याताओं को ऐसी पुस्तकों का समय-समय पर अध्ययन करने हेतु प्रोत्साहित किया। इस मौके पर समस्त महाविद्यालय व्याख्याताओं द्वारा इस दिशा में नूतन ज्ञान देने हेतु खटेड़ का आभार प्रकट किया। कार्यक्रम में डॉ. प्रगति भटनागर, अभिषेक शर्मा, घासीलाल शर्मा आदि उपस्थित रहे। अंत में अभिषेक चारण ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संयोजन सोमवीर सांगवान ने किया।
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