जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के अहिंसा एवं शांति विभाग के तत्वावधान में ग्राम व सामुदायिक विकास एवं शिक्षकों की भूमिका पर पांच दिवसीय कार्यशाला का आयोजन
शिक्षा को फिर से समाजोन्मुखी बनाने की आवश्यकता है- प्रो. नरेशे
लाडनूँ, 12 मार्च 2020। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के अहिंसा एवं शांति विभाग के तत्वावधान में पांच दिवसीय संकाय विकास कार्यक्रम का शुभारम्भ गुरूवार को यहां सेमिनार हाल में कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ की अध्यक्षता में किया गया। रूरल इमर्सन एंड कम्युनिटी एंगेजमेंट्स विषय पर आधारित इस फेकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम का आयोजन महात्मा गांधी नेशनल कौंसिल आफ रूरल एजुकेशन एवं भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के संयुक्त सहयोग से आयोजित की जा रही है। कार्यशाला के शुभारम्भ सत्र में मुख्य अतिथि वर्द्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय कोटा के पूर्व कुलपति प्रो. नरेश दाघीच ने कहा कि भारत में ग्रामीण क्षेत्र में समुदाय का महत्व अधिक है। यहां इस बात का अध्ययन किया जायेगा कि ग्रामी व सामुदायिक विकास का आधार कया होना चाहिये। जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा आदि के आधार पर बने समुदायों तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने और उन्हें विकास से सीधा जोड़े जाने के लिये यह कार्यशाला उपयोगी बन पायेगी। उन्होंने कहा कि जब तक योजनाओं की क्रियान्विति में आर्थिक पूंजी के साथ सामाजिक पूंजी नहीं जुड़ती, तब तक योजनायें सफल नहीं हो पाती है। सामाजिक पूंजी का तात्पर्य सामाजिक नेटवर्किंग से है। सामाजिक सहयोग से ही आर्थिक नीतियां सफल हो सकती है। पश्चिमी देशों की तर्ज पर भारत में भी अर्बनाईजेशन ट्रेंड चल रहा है। ग्रामों से शहरीकरण की प्रक्रिया के कारण गांवों का समुचित विकास नहीं हो पाता है। हमारी शिक्षा पद्धति हमें हमारे समुदायों से अलग करती है, लेकिन अब वापस शिक्षा को समुदायोन्मुखी बनाना होगा। इसके लिये अध्यापक वर्ग को पहल करनी होगी। वे ग्रामीण क्षेत्रों से अपने आपको जोड़ें और उनकी विशेषताओं को पुनर्जीवित करने में सहायक बनें।
दो दशक से उच्च शिक्षा की बाढ, पर गुणवता घटी
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये कुलपति प्रो. बच्छराज दूगड़ ने कहा कि भारत दुनिया में उच्च शिक्षा की दृष्टि से द्वितीय स्थान रखता है, यहां पिछले दो दशकों से उच्च शिक्षा बाढ की तरह से बढी है, लेकिन इससे शिक्षकों की गुणवता में कमी भी आई है। यही कारण है कि आज फेकल्टी डवलेपमेंट कार्यक्रमों का संचालन करना पड़ रहा है। आज अध्यापन, शोध एवं शिक्षण में नवाचार बहुत बढे हैं, जिनकी पूर्ण जानकारी होनी आवश्यक है। फेकल्टी को समाज में व्याप्त स्किल को देखने-पहचानने और उसे विकसित करने के साथ समुदाय को उसे सिखाने की जिम्मेदारी भी है। उच्च शिक्षा के समक्ष आज बुहत सी चुनौतियां हैं। अपनी स्किल को विकसित करके समाज के समक्ष जायें और उन्हें सीखाकर आत्मनिर्भर बनायें। इसके लिये विद्यार्थियों का सहयोग भी लिया जा सकता है। यहां समाज कार्य विभाग के विद्यार्थी व शिक्षक इसे कर रहे हैं। गुजरात विद्यापीठ के गांधी अध्ययन केन्द्र की प्रो. पुष्पा मोटियानी ने कहा कि महात्मा गांधी ने अपनी पुस्तक ग्राम स्वराज्य में गांवों के विकास पर जोर दिया था। गांवों को स्वावलम्बी बनाने की आवश्यकता है। वहां आरोग्य, शिक्षण एवं जीवनोपयोगी वस्तुओं में आत्मनिर्भरता दी जानी आवश्यक है, लेकिन पश्चिमी विकास से प्रभावित होकर गांवों को उपेक्षित कर दिया गया है। हम प्रकृति को भूल रहे हैं। प्रकृति के साथ तारतम्यता टूटने से ही विकृतियां आई हैं।
ग्राम विकास के लिये महिला चेतना जरूरी
कोटा खुला विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. केएस सक्सेना ने कहा कि ग्रामीण विकास में महिलाओं की भागीदारी होने से ही सफलता मिल सकती है और उसके लिये उनका शिक्षित होना आवश्यक है। गांवों में विकास के साथ राजनीति की गंदगी बढती जा रही है और इसके कारण गांवों में आपसी प्रेमभाव व आत्मीयता खो रही है। राजनीति को हटाने पर ही गांवों में यह सब वापस लाये जा सकते हैं। गांवों के विकास के लिये शिक्षा व स्वास्थ्य पर सबसे ज्यादा ध्यान जरूरी है और इनके लिये बसे ज्यादा बजट भी आता है, लेकिन वह भ्रष्टाचार की भेंटठ चढ जाता है। गांवों में स्वास्थ्य, शिक्षा व महिला चेतना की जागृति आवश्यक है। महात्मा गांधी नेशनल कौंसिल आफ रूरल डेवलेपमेंट हैदराबाद के डाॅ. शत्रुघ्न भारद्वाज ने प्रारम्भ में कार्यशाला का परिचय प्रस्तुत किया औरबताया कि महात्मा गांधी कहते थे कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है; उनका सपना था कि गांव स्वालम्बी हो, गांवों की सरकार अलग से बनी, लेकिन आज गांवों से शहरों की ओर पलायन हो रहा है। इसलिये गांवों के समुचित विकास पर ध्यान देना आवश्यक है। अहिंसा एवं शांति विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. अनिल धर ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया और विषय प्रवर्तन किया। कार्यक्रम समणी प्रणव प्रज्ञा के संगल संगान से प्रारम्भ किया गया। अंत में डाॅ. रविन्द्र सिंह राठौड़ ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर समणी नियोजिका डाॅ. समणी मल्लीप्रज्ञा, प्रो. समणी सत्यप्रज्ञा, प्रो. बीएल जैन, प्रो. प्रेमानन्द मिश्रा, प्रो. रेखा तिवाड़ी, डाॅ. जुगलकिशोर दाधीच, डाॅ. जसबीर सिंह, डाॅ. बिजेन्द्र प्रधान, डाॅ. प्रद्युम्न सिंह शेखावत, डाॅ. विकास शर्मा, डाॅ. योगेश जैन, डाॅ. गिरीराज भोजक, डाॅ. अमिता जैन, डाॅ. पुष्पा मिश्रा, डाॅ. विनोद सियाग आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. वंदना कुंडलिया ने किया।
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