जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) में विशेष व्याख्यानमाला आयोजित

प्राकृत के विशाल ग्रंथों में झलकती है भारतीय संस्कृति- प्रो. प्रेमसुमन

लाडनूँ, 8 सितम्बर 2021। जैन विश्वभारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के प्राकृत व संस्कृत विभाग के तत्वावधान में आयोजित मासिक व्याख्यानमाला में सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. प्रेमसुमन जैन ने अपने विशेष व्याख्यान में कहा कि प्राकृत भाषा भारतीय संस्कृति का आधार है। इस भाषा में सृजित विशाल ग्रंथों की परम्परा में हम अपनी संस्कृति को प्रत्यक्ष देख सकते हैं। उन्होंने प्राकृत की तुलना अन्य भारतीय भाषाओं के साथ करते हुए प्राकृत को अति प्राचीन भाषा बताया तथा कहा कि इसके प्रमाण हमें वेदों में भी मिल जाते हैं। प्राकृत व संस्कृत विभाग के अध्यक्ष प्रो. दामोदर शास्त्री ने प्राकृत को सर्वजन सुलभ बनाने की आवश्यकता बताई तथा कहा कि इसके लिए व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार किया जाना आवश्यक है। कार्यक्रम डॉ. सुमत कुमार जैन के मंगलाचरण से प्रारम्भ किया गया तथा डॉ. समणी संगीत प्रज्ञा ने स्वागत वक्तव्य प्रस्तुत किया। इस विशेष व्याख्यान में देश-विदेश के 90 प्रतिभागियों ने भाग लिया। कार्यक्रम का संयोजन डॉ. सत्यनारायण भारद्वाज ने किया।

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